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पुराना शिगूफा है कांग्रेस का दलित कार्ड, मतलब निकल गया तो, पहचान.......!

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दलित कार्ड कांग्रेस का पुराना शिगूफा है। चरनजीत सिंह चन्नी को पंजाब सरकार की कमांड थमा, कांग्रेस ने पहली मर्तबा दलित कार्ड का इस्तेमाल नहीं किया है। कांग्रेस 5 दशकों से ज्यादा से दलित कार्ड खेलती आई है। कांग्रेस जब भी मजबूर हुई। उसने दलित कार्ड खेला है। लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस दलितों की आपनी पारंपरिक जमीन इसलिए खिसका बैठी है क्योंकि दिल से कभी भी कांग्रेस ने दलित को तरजीह नहीं दी। इसकी एक नहीं अनेको उदाहरण हैं। बिहार, महाराष्ट्र और राजस्थान में कांग्रेस दलित व्यक्ति को सीएम के औहदे से नवाज कर बाद में हाशिये पर धकेल चुकी है। भोला पासवान शास्त्री, राम सुंदर दास, दमोदरम संजीवैया, सुशील कुमार छिंदे औऱ जगननाथ पहाडिया यह सब वह शख्स हैं। जिन्हें कांग्रेस ने वक्त की मार के साथ सीएम के औहदे दिए। लेकिन इनमें से कोई भी शख्स साल भर से ज्यादा सीएम की गद्दी पर विराजमान नहीं रहा। कांग्रेस के अलावा बिहार के सीएम नीतिश कुमार ने भी 7 बरस पहले दलित कार्ड खेल जीतन राम माझी को सीएम बनाया। लेकिन आज माझी नीतिश कुमार की पार्टी से भी बाहर हैं। हां, इन सब में से मायावती भाग्यशाली है। बहन जी चार मर्तबा ...

तेलंगाना में नई एक्साइज नीति स्वागतयोग्य, आदिवासियों की भी सुने सरकार

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  तेलंगाना में नई एक्साइज नीति स्वागतयोग्य, आदिवासियों की भी सुने सरकार दक्षिण का सूबा है तेलंगाना। आंध्र से कट कर बना था तेलंगाना। 2 जून 2014 को भारत के नक्शे पर आए तेलंगाना की दो ख़बरे हैं। बहुजन समाज के लिए     यह ख़बरें बेहद अहम है। पहली, तेलंगाना में आदिवासियों और वन अधिकारियों में हिंसक झडपें बढ रही है। जद में है, खेती की जमीन। जमीन पर मालिकाना हक को लेकर तकरार लगातार जारी है। सवा सात साल पुराने तेलंगाना में 2019 के बाद से ऐसे 8 मामले सामने आएं हैं। सत्तापक्ष का इल्जाम है कि आदिवासी सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए हुए है। लेकिन आदिवासियों का आरोप है कि उनकी परंपरा को धवस्त करने की नीयत है। इसीबीच, तेलंगाना की नई आबकारी नीति में दलितों, पिछडों के लिए 30 फीसद आरक्षण का प्रावधान किया गया है। याने तेलंगाना में अब शराब के कारोबार पर सिर्फ स्वर्णों का हक नहीं रह जाएगा। मुल्क के बाकी हिस्सों में शराब के कारोबार में दलितों, पिछडों को ऐसा मुकाम हासिल नहीं है। जिस मुकाम को तेलंगाना सरकार देने की सोच रही है। सरकार का फैसला लागू हो जाता है तो समाज में बराबरी की उम्मीदें जगेगी। बाबा...

दलितों पर ज़बर-जुल्म के मामले 25 फीसद बढे, हाथरस में ठाकुरों को संविधान-कानून का कोई डर नहीं, थैंक्यू मोदी तो बनता है

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मेरा देश बदल रहा है, आगे निकल रहा है। देश कितना बदल गया है ? इसकी तस्वीर हाथरस के बूलगढी गांव में साफ देखी जा सकती है। जात-पात, ऊंच-नीच अब भी बलगूढी गांव के बाशिंदों के सिर चढ कर बोल रही है। यह वहीं गांव है यहां पिछले साल 14 सितंबर को दलित की बेटी का दुष्कर्म के बाद कत्ल कर दिया गया था। घटना के साल बाद भी स्वर्ण जात वालों का अंहकार जस का तस है। बीबीसी की रिपोर्ट में यह डरावना खुलासा हुआ है। यह खुलासा ऐसे वक्त हुआ है जब कुछ दिन पहले ही अमेरिका में ‘ डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व ’ को लेकर जोरदार आवाज़ बुलंद हुई है। सोशल मीडिया पर ‘ डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व ’ को लेकर खूब हल्ला बोला गया। कार्यक्रम से पहले ही अमेरिका से लेकर दिल्ली तक हिन्दुत्व एक्टिविस्ट प्रोग्राम का विरोध करने लगे। आम आदमी पार्टी से बीजेपी में आए कपिल मिश्रा ने तो जमकर हिन्दुत्व का वकालत सोशल मीडिया पर की। शायद उसी का असर बूलगढी गांव के बाशिंदों पर है। बीबीसी के दिलनवाज़ पाशा जब बूलगढी में पहुंचे तो स्वर्ण जाति की महिला ने इतनी अभद्र टिप्पणी की। जिसकी सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है। इस महिला ने बीबीसी संवाददात...